Manoshi Hindi Page

kuchh yun hee
Home
meri ghazal
holee geet voice
Prem
smriti
pooja
ujaala
prakriti
kuchh khayaal
kuchh yun hee
Haiku
Dohe
Avasar
nazm
baal kavitaayein
be-bahar ghazalein
kahaniyaan
Poetry in English
some links of mine

कुछ यूँ ही...

वाईज़

पुरानी एक अखबार की कटिंगे मिली आज। नवभारत, रायपुर से, १९९४ की। मेरी एक पुरानी कविता, मानसी मुखर्जी के नाम से लिखी हुई।

उसकी बातों का सिलसिला चल पड़ा है आज
वो कहता है मेरे बारे में
कभी दुनिया की कहता है
उसकी बातों की दूरी नापते नापते
मेरे अंदर का मुसाफ़िर कभी सो गया
और कभी शाम को ही लगा कि
शायद उजाला हो गया
फिर एक दिन देखा
तो सामने का पत्थर भी रोता है
कहते थे वो इंसां एक शक्ल में मसीहा है
वो दीवारों के बीच की ईंट है
वो गु़बार उड़ाता एक मुसाफ़िर है
मगर, हक़ीकत यही है कि
तलाश-ए-मंज़िल ही मंज़िल है उसकी
एक लाश को वो भी ढोता है।

रिटायरमेंट

अंधेरे बरामदे में लाल बत्ती
और एक उडती लकीर
हर धूयें की लकीर को पकड
एक अनजानी चिन्ता
कुछ घंटे पहले हुआ संवाद
एक कागज़ पर घसघस की आवाज़
और सूटधारी के हाथ की छुअन का अहसास
हमसफ़र बन उड रहे हैं
और दोहरा रहे हैं वो चित्र
दिमाग में बार बार
ज़िन्दगी का एक और पत्थर पार हुआ है आज
एक नये पत्त्थर तक पहुंचने के लिये
हर सिगरेट की कश के साथ
एक मिनट कम हुआ है ज़िन्दगी का
दूरी कम हुई है उस आखिरी पत्थर से


बदलती दुनिया?

क्रिसमस की छुट्टी का दिन
बर्फ़ जमती जाती है रास्ते में
ऊंची, और ऊंची पहाड जैसी
घर में तिकोना पेड
पचास किस्म के तोहफ़े
बच्चों का हुल्लड
किचन में खटती मां
फ़र्क नहीं कोई जो दीवाली पर हुआ
या दशहरे में या
कभी पिकनिक से वापस आकर
मां को देखा है बच्चे ने वहीं किचन में
बदल गयी है दुनिया
क्या सचमुच?
नहीं मगर मां का स्थान
आज भी बच्चे का मांगना खाना
मां से किचन में जाकर
और मां की संतोष भरी मुस्कान
आज भी नहीं बदली है दुनिया

कुछ यूँ ही...

जो तेरी आँखों मे है वो
मेरी दुनिया रही तो क्या
'गर छ्लक जाये तेरी आँखें कभी
और बह जाये दुनिया मेरी, तो क्या
छोटी सी एक कहानी जो रोये
किसी कोने में सिमट कर
और उधडे हुये ख्वाबों के संग
उडता हो कोई चीथडा भी तो क्या
ख्वाब ही तो हैं बिखर जाये भी तो क्या
एक ज़िन्दगी यूं ही गुज़र जाये भी तो क्या...

छन्न...
वो रोज़ टुकर टुकर
देखता था मेरी ओर
मेरे पोर पोर में बसता
फिर टप टप टपकता
और मुझे ले कर बह जाता
रात को ज़रा देर तमाशा करता
और मेरे सिरहाने सो जाता
मगर आज फिसल कर गिरा
छन्न...
टूटने के बाद
आँखों मॆं चुभकर
अब ज़ार ज़ार पानी बहाता है

चाँद पर ज़मीं
ज़मीं से ऊँचा देखने की
सच कहूँ तो चाह बड़ी थी
हौसला उस चाँद को पर
पाने का फिर हो न पाया

चाँद होगा चाँद वो
अपनी जगह उनको मुबारक
मगर भीड़ में तारे बन कर
साथ चलना भी न भाया

आसमां जो छोड़ आये
पीछे मुड़ के अब न देखा
चल के रुकना, रुक के चलना
बहुत हुआ, फिर हो न पाया

बड़ी हसीं थी शाम माना
रात भी जवान थी पर
जब उजाला हुआ, सवेरे
समां मगर फिर बँध न पाया

कभी खुशी के बुलबुले थे
राह में जब, दोस्त बड़े थे
ग़म की आँधी से बचाने
कोई अपना भी न आया

चलो चलें अब लौट जायें
महक पुकारे सोंधी मिट्टी
घर तो आखिर घर है प्यारे
बिदेस वादा सभी पराया

चेहरे पर चेहरा
 
धीरे धीरे धीरे
परत दर परत
ओढ़ी है मैंने
चेहरे पर चेहरे
गढ़े हैं
झुर्रियों के बीच
पहचाना नहीं जाता मैं
पर मेरी आत्मा वही है
अभी भी रुकी हुई
शैशव में खेलती
मेरे आसपास टहलती
परत बहुत मोटी हैं
उतारना आसान नहीं
पर जानता हूँ
शैशव खोया नहीं मेरा
चेहरे के पीछे एक चेहरा
उसके पीछे एक और चेहरा
और भी कई चेहरे
पर कहीं सुरक्षित है
मेरा असली चेहरा
आज भी कहीं जीवित है
मेरा शैशव मेरा बचपन

पुराने निशान
 
जलते निशान की बू से
आज एक नये पल ने
पहचान कर मुझे
पीछे पलट कर देखा और
निकल गया मेरे करीब से
वही निशान जो बरसों पहले
मेरे बायें वक्ष के ज़रा नीचे
गहरे आघात से रिस रहे थे
आज सूख चुका है ज़ख्म
दर्द भी तो नहीं
नये पलों से घबराता भी नहीं मैं
पर फिर क्यों आ कर छेड जाते हैं वो
मेरे उस निशान पर से हाथ सहला कर
क्यों गुज़र जाते हैं
पुराना पल जी उठता है
ज़ख्म रिसने लगते हैं
दर्द होता है
वहीं फिर बायें वक्ष के ज़रा नीचे
सूखे ज़ख्म भी रिसते हैं
कुछ एक सा नहीं रहता
टूटने के बाद

 

वो अनकही बातें

गुज़रती रहीं वो शामें
वो ढेरों अनकही बातें
और उन बातों के किसी कोने में
झरते लम्हों से
चुन कर रख लेना मेरा
इक छोटा सा पराग
खुश्बू उसकी चुपके से
देती थी जो मधुर अहसास
उन सपनीले पलों में
वो कुछ चुप पल
कुछ कहने की कोशिश
और फिर इक लम्बी साँस
जो बात कही नहीं थी कभी
और कह गयी सब कुछ
रोना भी सीखा चुपके से और
हँस कर छुपा लेना वो मन उदास
कुछ धीरे से कह जाना
फिर कहना कुछ नहीं
और ओढ लेना फिर से
चुप्पी का लिबास
उन ढेर सारी बातों में
उन बिना मिली मुलाकातों में
बन्द रह गये बँध कर
जाने कितने अहसास

 कहानी
 
एक कहानी सोची है
ताना बाना बुनती मन में
पांव जैसे रुक रुक जाते हैं उसके
कि कहानी है न
सब सुन्दर होना ज़रूरी है
राजकुमारी की परी
और परियों की वो जादू छडी
मेरी कहानी में भी है एक राजा
किसी धुन्ध में फँसा हुआ सा
और एक मोती उसे भी लानी है
ऐसा ही मन में उसने ठानी है
तेज़ आँधी से गुज़र कर
वन-जंगल से हो कर
सुख सागर से खुशी ढूंढ कर
रानी की माला में पिरोनी है
वीर बना लडा वो दानव से
दानव की जीत हुई मानव से
सुख मन्थन में दुख पाया
फिर राजा ने और ज़ोर लगाया
आखिर एक ऐसा किया वार
मार दानव को लूट लिया हार
रानी के सूने कण्ठ में डाला
मगर रानी को आराम न आया
आज उसे चाहिये थी नयी अंगूठी
और राजा चला इच्छा करने पूरी
सुख सागर में फिर सुख ढूँढने
और मन के भयंकर दानव से लडने
मेरी कहानी आज भी अधूरी है
बरसों से हुई नहीं पूरी है
आज भी लड रहा है राजा
और रानी कर रही प्रतीक्षा...
 

all poems are by Manoshi Chatterjee copyright