एक उम्र हमने यूँ हार
ली देख लो
तुम नहीं थे मगर काट ली
देख लो
लौट कर कब कोई आता है जा
के, ये
बात देर से सही, मान ली
देख लो
बेवजह भी कभी आँखें रोती
हैं, अब
ऐसी भी इक वजह जान ली देख
लो
तुम पे बस मेरा हक़ है, गु़रूर
छोड़ ये
ज़िंदगी किस तरह बाँट ली
देख लो
’दोस्त’ तुम से जुदा होने
का फ़ैसला
कर के मौत अपनी ही माँग
ली देख लो